हजरत अली की जिंदिगी का कुछ हिस्सा hajrat ali ki life biography ,quet,lesson,biography
आज हम इस पोस्ट मे आपको हजरत आली से जुड़ी कुछ बाते और उनकी जिंदिगी के बारे मे बताने जा रहे है ।
हजरत अली के बारे मे मुहम्मद सल्लालहूयालीहीबसल्म ने फरमाया की मे इल्म का शहर हूँ और अली उसका दरबाज़ा है । हजरत अली बच्चो मे सबसे पहले बच्चे थे | जो मुसलमान हुए । तो चलिये आज हम हजरत अली के बारे मे थोड़ा से पड़ लेते है । और आज जानते है की उनके कुछ लाइफ बदलने बाले बिचार उनके सोच और थोड़ा सा उनके ईमान ,ख्याल के बारे मे जानेगे |
दुरूदे पाक की फ़ज़ीलत
एक बार किसी भिकारी (Beggar) ने गैर मुस्लिमों से सुवाल किया, उन्हों ने मज़ाक़ के तौर पर मौला अली मुश्किल कुशा, शेरे खुदा 2005 के पास भेज दिया जो कि सामने तशरीफ़ फ़रमा थे। उस ने हाज़िर हो कर सुवाल किया तो आप ने 10 बार दुरूद शरीफ पढ़ कर उस की हथेली पर दम कर दिया और फ़रमाया: मुठ्ठी बन्द कर लो और जिन लोगों ने भेजा है उन के सामने जा कर खोल दो। (कुफ़्फ़ार हंस रहे थे कि खाली फूंक मारने से क्या होता है !) मगर जब साइल ने उन के सामने जा कर मुठ्ठी खोली तो उस में एक दीनार था ! येह करामत देख कर कई गैर मुस्लिम मुसल्मान हो गए।विर्द जिस ने किया दुरूद शरीफ़ और दिल से पढ़ा दुरूद शरीफ़ हाजतें सब रवा हुई उस की है अज़ब कीमिया दुरूद शरीफ़ मौला अली का तआरुफ़मुसल्मानों के चौथे खलीफा, अमीरुल मुअमिनीन हज़रते मौला अली शेरे खुदा 43 मक्का शरीफ़ में पैदा हुए। आप की अम्मीजान हज़रते बीबी फातिमा बिन्ते असद ने अपने वालिद के नाम पर आप का नाम “हैदर” रखा, वालिद ने आप का नाम "अली" रखा और हुजूर 4136 ने आप को " असदुल्लाह" के लकब से नवाज़ा (मिरआतुल मनाजीह, 8/412) इस के इलावा "मुर्तज़ा (चुना हुवा )", "कर्रार (पलट पलट कर हम्ले करने वाला)", "शेरे खुदा" और "मौला मुश्किल कुशा" आप के मश्हूर अल्काबात हैं । ।
हज़रत मौला मुश्किल कुशा, अलिय्युल मुर्तजा, शेरे खुदा की कुन्यत “अबुल हसन" और "अबू तुराब" है । आप प्यारे आका, मक्की मदनी मुस्तफ़ा के चचाज़ाद भाई (Paternal Cousin) हैं। आप 2009 ने 4 साल 8 माह, 9 दिन तक ख़िलाफ़त फ़रमाई । 17 या 19 रमज़ानुल मुबारक को एक ख़बीस ख़ारिजी के क़ातिलाना हम्ले से आप शदीद ज़ख़्मी हो गए और 21 रमज़ानुल मुबारक, इतवार की रात शहीद हो गए ।अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की आप पर रहमत हो और आप के सदके हमारी बेहिसाब मफ़िरत हो ।अलिय्युल मुर्तजा शेरे ख़ुदा हैं कि इन से खुश हबीबे किब्रिया हैं|
शेरे ख़ुदा के इर्शादात(फरमाने हजरत अली )
1. अमल से बढ़ कर उस की कबूलिय्यत का एहतिमाम करो, इस लिये कि परहेज़ गारी के साथ किया गया थोड़ा अमल भी बहुत होता है और जो अमल मक्बूल हो जाए वोह कैसे थोड़ा होगा ?
2. (ईद के दिन फ़रमाया :) हर वोह दिन जिस में अल्लाह पाक की ना फ़रमानी न की जाए हमारे लिये ईद का दिन है ।
3. मैं तुम पर दो चीज़ों से बहुत ज़ियादा खौफ़ज़दा रहता हूं : (1) ख़्वाहिश की पैरवी और (2) लम्बी उम्मीदें ।
6. इन्सान का क़द 22 साल जब कि अक्ल 28 साल की उम्र तक बढ़ती है,
इस के बाद मरते दम तक तजरिबात का सिल्सिला रहता है ।
7. गुनाहों की नुसत से इबादत में सुस्ती और रिज़्क़ में तंगी आती है।
8. बन्दा बेसब्री कर के अपने आप को हलाल रोज़ी से महरूम कर देता है और इस के बावजूद अपने मुक़द्दर से ज़ियादा हासिल नहीं कर पाता ।
9. जिस " तक्लीफ" के बाद "जन्नत" मिलने वाली हो वोह "तक्लीफ" नहीं और जिस "राहुत" का अन्जाम "दोज़ख" पर हो वोह " राहत" नहीं ।
10 . अपनी राय को काफी समझने वाला खतरे में है ।
11. जब तुम अपने दुश्मन से बदला लेने पर क़ादिर हो जाओ तो इस के शुक्राने में उसे मुआफ़ कर दो ।
12. उन लोगों में से मत होना जिन्हें नसीहत उसी वक्त फ़ाएदा देती है जब मलामत में मुबालगा (यानी बहुत ज़ियादा शरमिन्दा) किया जाए ।
13. लालच की चमक देख कर अक्सर अक्ल मार खा जाती है ।
14. जब किसी शख्स की अक्ल कामिल हो जाती है तो उस की गुफ़्तगू में कमी आ जाती है ।
15. लोगों में जो ज़ियादा इल्म वाला होता है वोह अल्लाह पाक से ज़ियादा डरता, ज़ियादा इबादत करता और अल्लाह पाक (की रिज़ा) के लिये ज़ियादा नसीहत करता है ।
16 माल व औलाद दुन्या की खेती है और नेक आ'माल आखि़रत की, अल्लाह पाक अपने बहुत से बन्दों को येह सब अता फरमाता है ।
17. अगर मैं चाहूं तो सूरतुल फ़ातिहा की तफ्सीर से 70 ऊंट भर दूं । ( यानी उस की तफ्सीर लिखते हुए इतने रजिस्टर तय्यार हो जाएं कि 70 ऊंट उसे उठाएं।)
18. अगर शराब का एक क़त्रा कूंएं में गिर जाए फिर उस जगह मनारा बनाया जाए तो मैं उस पर अज़ान न कहूं और अगर दरिया में शराब का क़तरा गिरे फिर दरिया खुश्क हो और वहां घास पैदा हो तो मैं उस में अपने जानवरों को न चराऊं ।
19. लम्बी उम्मीदें आख़िरत को भुलाती हैं और ख़्वाहिशात का इत्तिबाअ (Follow) हक़ से रोकता है।
20. अपने घरों से मक्ड़ियों के जाले (Spider's web) दूर करो, येह नादारी ( तंगदस्ती) का बाइस होते हैं|
21. हर नेकी करने वाले की नेकियों का वज्न किया जाएगा सिवाए सब्र करने वालों के कि इन्हें बे अन्दाज़ा व बे हिसाब दिया जाएगा।
22. जन्नत के दरवाज़े के क़रीब एक दरख़्त है उस के नीचे से दो चश्मे (Springs) निकलते हैं मोमिन वहां पहुंच कर एक चश्मे में गुस्ल करेगा उस से उस का जिस्म पाको साफ़ हो जाएगा और दूसरे चश्मे का पानी पियेगा उस से उस का बातिन पाकीज़ा हो जाएगा फिर फ़िरिश्ते जन्नत के दरवाज़े पर (उसका ) इस्तिक्बाल करेंगे ।
23. दो दोस्त मोमिन और दो दोस्त काफ़िर (थे), मोमिन दोस्तों में एक मर जाता है तो बारगाहे इलाही में अर्ज करता है या रब फुलां मुझे तेरी और तेरे रसूल की फ़रमां बरदारी का और नेकी करने का हुक्म करता था और मुझे बुराई से रोकता था और ख़बर देता था कि मुझे तेरे हुज़ूर हाज़िर होना है, या रब ! उस को मेरे बाद गुमराह न कर और उस को हिदायत दे जैसी मेरी हिदायत फ़रमाई और उस का इक्राम कर जैसा मेरा इक्राम फ़रमाया, जब उस का मोमिन दोस्त मर जाता है तो अल्लाह पाक दोनों को जम्अ करता है और फ़रमाता है कि तुम में हर एक दूसरे की तारीफ़ करे तो हर एक कहता है कि येह अच्छा भाई है, अच्छा दोस्त है, अच्छा रफ़ीक़ है । और | दो काफ़िर दोस्तों में से जब एक मर जाता है तो दुआ करता है, या रब ! फुलां मुझे तेरी और तेरे रसूल की फ़रमां बरदारी से मन्अ करता था और बदी (या'नी बुराई) का हुक्म देता था, नेकी से रोकता था और ख़बर देता था कि मुझे तेरे हुज़ूर (यानी तेरी बारगाह में) हाज़िर होना नहीं, तो अल्लाह पाक फ़रमाता है कि तुम में से हर एक दूसरे की तारीफ़ करे तो उन में से एक दूसरे को कहता है बुरा भाई, बुरा दोस्त, बुरा रफ़ीक़ ।
24. इल्म खजाना है और सुवाल करना इस की चाबी है, अल्लाह पाक तुम पर रहूम फ़रमाए सुवाल किया करो क्यूं कि इस (सुवाल करने की सूरत) में चार अफ़्राद को सवाब दिया जाता है। सुवाल करने वाले को, जवाब देने वाले को, सुनने वाले और उन से महब्बत करने वाले के
25. चीजें हाफ़िज़ा (Memory) तेज़ और बलगम दूर करती हैं : (1) मिस्वाक (2) रोज़ा (3) कुरआने पाक पढ़ना ।
26.जो बिग़ैर इल्म के लोगों को फ़तवा दे आस्मानो ज़मीन के फ़िरिश्ते उस पर लानत करते हैं ।
27 . मज़लूम के ज़ालिम पर गुलबे का दिन (यानी क़ियामत का दिन) जालिम के मलूम पर गुलबे के दिन से ज़ियादा सख़्त है ।
28. थोड़ी चीज़ देने से शर्म न करो क्यूं कि देने से महरूम रहना इस से भी थोड़ा है।
नोट:यह कंटैंट एक इस्लामिक
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